आज सुबह FM रेडियो पर एक रेडियो जॉकी को बोलते सुना, बहुत परेशां लग रहीं थी कि मुम्बई चिड़ियाघर मैं पेंगुइन क्यों लाये जा रहे हैं । बात थोड़ी सही है पर पूरी नहीं । आखिर भला कोई भी जानवर चिड़ियाघर मैं क्यों रहे ? हम इसको चिड़ियाघर कहते हैं पर जानवर के लिए तो यह जेल ही है। आजीवन कारावास ! और बेचारे को पता भी नहीं कि सजा किस बात की ?
पर कोई तो वजह होगी कि आखिर सारी दुनिया मैं चिड़ियाघर होते हैं और उनका लगभग कोई विरोध भी नहीं होता ।
वजह साफ़ है जानवर और आदमी की दुरी कम करते हैं चिड़ियाघर । चिड़ियाघर मैं जा कर आप देखते हो कि शेर क्या होता है ज़ेबरा क्या होता है । तब आप उनसे जुड़ते हो और फिर शुरू होता है वो सफर जहाँ आप उस जानवर की जाती के हक़ और बचाव के लिए आप विचार करते हैं । जरूरी नहीं कि चिड़ियाघर जाने वाला हर शख्स जानवरों का हिमायती बन जाए पर शुरुआत यही से होती है । आखिर अगर आपने किसी को देखा ही नहीं तो आप उससे लगाव करेंगे भी कैसे ? वो क्या और तरीका होगा जिससे एक शहरी बच्चा शेर देख पायेगा और उससे जुड़ पायेगा ? हर किसी के लिए तो जंगल सफारी करना सम्भव नहीं और अगर हर कोई जंगल सफारी करने लगा तो फिर भाई जंगल ही कहा बचेगा ? डिस्कवरी चैनल या स्कूल की किताब ? फिर तो शेर भी भगवान बन जाएगा और हर कोई नयी कहानी सुनाएगा, देखा किसी ने होगा नहीं बस सिर्फ कहानी। पर इस पूरी बहस मैं उस जानवर का क्या दोष जो पिंजरे मैं बंद कर दिया जाता है जीवन भर के लिए ? तो उस पर तो इतना ही कहा जा सकता है कि उसकी बाकी नस्ल की सुरक्षा के लिए ये उसका बलिदान है, बहुत से लोग इस बात से बाकिफ ना भी हो पर ये सच तो है ही । तथ्य ये भी है कि चिड़ियाघर मैं अधिकतर जानवर किसी और चिड़ियाघर से ही लाये जाते हैं ना की जंगल से यानी की ये बदकिस्मत जानवर उन जानवरो से अलग होते है जो जंगल मैं ही पैदा हुए या बड़े हुए होते हैं । इनको ना तो शिकार करना आता होता है ना ही ये जंगल मैं जी सकते हैं ।
रही बात पेंगुइन की तो फिर वही बात की आखिर मुम्बई मैं रहने वाला बच्चा भला पेंगुइन कैसे देखेगा ? चिड़ियाघर मैं पेंगुइन आना जरूरी है बच्चो को समझना जरूरी है कि पेंगुइन डिज़नी की फिल्मों के बाहर भी होते हैं । और अगर इसके लिए कुछ खर्च होता है तो इसमें प्रॉब्लम क्या है ? हम विकासशील देश हैं गरीब नहीं । क्यों हम दुबई और सिंगापुर मैं पेंगुइन देख सकते हैं पर मुम्बई मैं नही ? पेंगुइन के लिए जरूरी इंतजाम होने चाहिए और इसके लिए सबको सहयोग करना चाहिए ना कि सरकार के हर फैसले के खिलाफ खड़े हो जाना । जो लोग पेंगुइन्स के हिमायती हैं उनको आगे आना चाहिए कि उम्दा इंतज़ाम हो पेंगुइन और उनको देखने आने वालों के लिए । पर सुनता कौन है पेंगुइन कि पड़ी किसको है बस हल्ला मचाये जाओ ।
अपने को क्या अपुन तो मस्त है मस्त मगर है
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